रविवार, 8 अगस्त 2010

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पाठकों कल मै एक कथा में गया ,धार्मिक अनुष्टान के प्रति सभी के मन श्रृद्धा से ओत -प्रोत थे बच्चों में कथा के बाद मिलने वाले प्रसाद को लेकर विशेष उत्साह था। कथा समाप्ति की ओर थी और पंडित जी ने बोलना शुरू किया , बोलो सत्यनारायण भगवान की जय ,शंकर भगवान की जय , गणेश जी की जय , ओंर अंत में भारत माता की जय । वास्तव में ये अंतिम जय- कर बहुत विशेष थी ,इस जय-कर ने जैसे मेरे मन में विचारों का सैलाब ला दिया एक तरफ हिन्दू धार्मिक अनुष्टान जिसने भारत के अस्तित्व को अपने इश्वेरों और देवताओं सा महत्व और सम्मान देते और दूसरी तरफ भारत में के मुसलमानों को वेंदेमात्रम बोलने में अपने धर्म विरोधी हो जाने का दर सताता है और उनके मुल्ला मोलवी हमारे राष्ट्र- गीतों को धरम विरोधी बताते रहतें है । कितना अंतर है दोनों धर्मों में पर हमारे अंधे सेकुलर नेताओं को इस्लाम से ज्यादा सभ्य और शांत राष्ट्रप्रेमी समाज नहीं दिखाई देता हर रोज हमारे जवानों को कश्मीर में उनकी इस भूल की कीमत चुकानी पड़ रही hai